विद्यालय बालकों को जीवन की जटिल परिस्थितियों का सामना करने योग्य बनाता है। विद्यालय सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करता है तथा उसे अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करता है। विद्यालय, बालकों को घर तथा संसार से जोड़ने का कार्य करते हैं। व्यक्तित्व का सामंजस्य पूर्ण विकास करने में विद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान है।
अध्यापक सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित ना रहें बल्कि बच्चों के सर्वांगिण विकास की जिम्मेदारी लें ताकि बच्चे हर क्षेत्र में अपना जौहर दिखा सकें। स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के साथ साथ हर विपत्तियों से निपटने में निपुण बनाना चाहिए।
शिक्षक की भूमिका शिक्षार्थियों को प्रेरित करने, प्रोत्साहित करने और शिक्षित करने के लिए है।
शिक्षक की भूमिका हमेशा एक सूत्रधार की होती है, एक तानाशाह की नहीं, सूत्रधार शिक्षक भूमिका होने के नाते अपने छात्र को ज्ञान प्राप्त करने और फिर से संगठित करने में सहायता करना है।
मातृभाषा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की आधारशिला है वहीं वह उसे उसकी संस्कृति से जोड़ने में सक्षम होती है। मातृभाषा के जरिये व्यक्ति को अपनी मूल संस्कृति एवं संस्कारों का ज्ञान होता है वहीं अपने समाज से भी जुड़ा रहता है।
बच्चों के सर्वांगीण विकास में माता-पिता का योगदान
बच्चों के साथ समय बिताएं …
बच्चों के दिमाग़ को पढ़ने की कोशिश करें …
स्कूल के कार्यों का घर पर रिवीजन कराएं …
बच्चों के पढ़ाई के समय को करें निर्धारित …
अपने बच्चों को सीखने में मदद करें …
अपने बच्चे के शेड्यूल को हमेशा व्यस्त न रखें …
नई चीज़ सीखें और बच्चों को भी सिखाएं
Yogesh Mehta